प्रश्न :-1 शीतयुद्ध के काल में दोनों महा शक्तियों ने एक तरफ तो हथियार की होड़ की तथा दूसरी ओर हथियार सीमित करने के लिए की। क्यों?
उत्तर :- हथियारों की होड़ :- अपना वर्चस्व स्थापित करना।
अति उत्तम तकनीक के हथियार। ज्यादा
ताकत के परमाणु बम बनाना।
हथियार को सीमित करना :- दोनों
देशों को ही अपने नष्ट होने का भय।
हथियार निर्माण से धन को बचाना। शास्त्र परिसीमन संधिया की।
1.
महत्त्वपूर्ण संसाधन तथा भू-क्षेत्र हासिल करना – महाशक्तियाँ
महत्त्वपूर्ण संसाधनों, जैसे तेल और खनिज आदि पर अपने नियंत्रण बनाने तथा इन देशों के
भू-क्षेत्रों से अपने हथियार और सेना का संचालन करने की दृष्टि से छोटे देशों के
साथ सैन्य गठबंधन रखती थीं।
2.
सैनिक ठिकाने – महाशक्तियाँ इन
देशों में अपने सैनिक अड्डे बनाकर दुश्मन के देश की जासूसी करती थीं।
3.
आर्थिक मदद – छोटे देश सैन्य
गठबंधन के अन्तर्गत आने वाले सैनिकों को अपने खर्चे पर अपने देश में रखते थे, जिससे महाशक्तियों
पर आर्थिक दबाव कम पड़ता था।
प्रश्न :-2 शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद क्या गुटनिरपेक्षता की नीति
प्रसांगिक अथवा उपयोगी है? स्पष्ट करें।
उत्तर :-1 विकासशील की नीति की
प्रसंगिकता।
2 NIEO को लागू करना।3 अंतर्राष्ट्रीय
क्षेत्र में अपनी पहचान तथा अस्तित्व बनाना।
4 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में विकसित
देशों के वर्चस्व को चुनौती देना।
5 गरीब देशों के आर्थिक शोषण के विरुद्ध
एकजुटता। 6 विश्वशांति तथा नि:शस्त्रीकरण लागू
करना।
प्रश्न :-3 शीतयुद्ध के परिणामों का वर्णन कीजिए
उत्तर :- i दो
ध्रुवीय विश्व का उदय ii सैन्य संधिया का गठन
iii गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उदय iv हथियारों
की होड़ शुरू
v महाशक्तियों की ओर से वैज्ञानिक एवं
तकनीकी क्षेत्र में प्रतियोगिता
अध्याय 2 दो
ध्रुवीयता का अंत
द्वितीय विश्वयुद्ध 1939-1945
तक मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र के बीच हुआ था जिसमें से मित्र राष्ट्र की जीत
हुई थी।
मित्र राष्ट्र-= अमेरिका
(USA),
फ्रांस, ब्रिटेन
(UK), सोवियत
संघ (USSR)
धुरी राष्ट्र:- जापान, जर्मनी ,इटली
शीतयुद्ध :- शीतयुद्ध से अभिप्राय उस
तनावपूर्ण राजनीतिक स्थिति से हैं जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सन् 1945-90
तक संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच जारी रहा|
" दो ध्रुवीयता का
अंत "
दो-ध्रुवीयता :-द्वितीय विश्व यद्ध के
बाद के दौर को दो ध्रुवीयता कहा जाता है, जिसमें
संपूर्ण विश्व दो समूह यानी सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में बट गया था।
निम्नलिखित कथन के पक्ष या
विपक्ष में एक लेख लिखें – “दूसरी दुनिया के विघटन के बाद
भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परंपरागत मित्र की जगह संयुक्त
राज्य अमेरीका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।”
पक्ष में तर्क:
1. सेवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका ही महाशक्ति के रूप में रह
गया है। सुरक्षा के लिए हमें अमेरिकी गुट में चले जाना चाहिए।
2. अमेरिका की अर्थव्यवस्था अच्छी है और साथ ही परमाणु हथियार की
दृष्टि से भी ये संपन्न है।
विपक्ष में तर्क:
सोवियत संघ ने 1947 में स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के आर्थिक तथा तकनीकि विकास
में बहुत मदद की। भारत को अंतरिक्ष में पहुँचाने के लिए सोविसत संघ ने तकनीकि
सहायता की। ‘आर्यभट्ट’ और ‘ऐपल’ इस मित्रता के
प्रतीक हैं।
सोवियत संघ की विशेषता :-
विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
उन्नत संचार प्रणाली
विशाल ऊर्जा संसाधन
उन्नत घरेलू उपभोक्ता उद्योग
आगमन की अच्छी सुविधाएं
राज्य का स्वामित्व
शॉक थेरेपी क्या थी? क्या साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का यह सबसे बेहतर
तरीका था?
शॉक थेरेपी :-
रूस, मध्य
एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों ने पूंजीवादी की ओर संक्रमण का एक खास
मॉडल अपनाया जिसे विश्व बैंक और IMF ने इस मॉडल को शॉक थेरेपी का
नाम दिया।
शॉक थेरेपी का अर्थ होता है आघात
पहुंचाकर उपचार करना।
शॉक थेरेपी के परिणाम :-
रूस का औद्योगिक ढांचा चरमरा उठा।
90% उद्योगों को निधि हाथों या कंपनियों को
बेच दिया गया।
इतिहास की सबसे बड़ी ग्रास सेल के नाम से
जाना गया।
रूस की मुद्रा रूबल में गिरावट आई।
सोवियत संघ के विघटन के मुख्य
कारण :-
सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा
कसना
राजनीतिक आर्थिक संस्थाओं की आंतरिक
कमजोरियां।
हथियारों की पागल दौड़ में शामिल होना।
पश्चिमी देशों की तुलना पर जनता निराश।
कम्युनिस्ट पार्टी का एकाधिकार।
मिखाईल गोर्बाचोव द्वारा सुधारों के प्रयासों
का विफल होना।
सोवियत प्रणाली का सत्तावादी होना।
लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी का ना
होना।
सोवियत संघ 15
गणराज्यों से मिलकर बना था और उसमें रूस का दबदबा होता था। जिससे बाकी देश अपने आप
को दमित और अपेक्षित समझते थे।
संसाधनों का अधिक उपयोग हथियारों में कर
रहे थे।
सोवियत संघ में मिखाईल
गोर्बाचोव के सुधारों का प्रयास :-
मिखाईल गोर्बाचोव ने पश्चिमी देशों के
साथ संबंधों को सामान्य बनाने का प्रयास किया।
इसके अलावा उन्होंने सोवियत संघ को
लोकतांत्रिक रूप देने का प्रयास किया।
गोर्बाचोव द्वारा सरकार और सोवियत संघ के
नियंत्रण का विरोध होने के बावजूद गोर्बाचोव ने इन गड़बड़ियों में हस्तक्षेप नहीं
किया।
गोर्बाचोव ने देश के अंदर आर्थिक, राजनीतिक
और लोकतांत्रिक सुधारों की नीति चलाई।
सोवियत संघ के विघटन के परिणाम
:-
शीतयुद्ध के दौर के संघर्ष की समाप्ति
हुई।
विश्व राजनीति में शक्ति संबंध बदल गए और
इस कारण विचारों और संस्थाओं के अपेक्षित प्रभाव में भी बदलाव आया।
अमेरिका अकेली महाशक्ति बन बैठा।
अंतर्राष्ट्रीय पटल पर नए देशों का उदय
हुआ।
विचारधाराओं की लड़ाई खत्म हुई।
विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष
जैसी संस्था ताकतवर देशों की सलाहकार बन गई।
हथियारों की ओर खत्म हो गई, दूसरी
दुनिया का पतन हो गया।
भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम
हुए? रूस और भारत की सोच :भारत जैसे
विकासशील देशों में सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं:
बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत व अन्य विकासशील देशों में
अनियंत्रित प्रवेश की सुविधा। भारत की विदेश नीति में परिवर्तन आया। 1981 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अलग हुए राज्यों को भारत ने
मान्यता दी तथा अपने अपने मैत्रीपूर्ण संबंध कायम रखे। भारत के रूस के साथ भी गहरे
संबंध बने। रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्वास का था।
सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत को यह उम्मीद थी कि
अंतर्राष्ट्रीय तनाव एवं संघर्ष की समाप्ति हो जाएगी और हथियारों की दौड़ पर अंकुश
लगेगा। भारत, रूस के लिए हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीददार देश बना। भारत
तथा रूस विभिन्न परियोजनाओं में साझीदार है। निष्कर्षतः सोवियत संघ के विघटन के
पश्चात् भारत ने अपनी विदेश नीति में परिवर्तन करके भारत के हितों की पूर्ति एवं
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि को और अधिक सुधारा।
Lesson
-4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र
1.
अपने-अपने इलाके (क्षेत्र) में चलने वाली ऐतिहासिक
दुश्मनियों और कमजोरियों का क्षेत्रीय स्तर पर समाधान ढूंढ़ना।
2.
अपने-अपने क्षेत्रों में अधिक शांतिपूर्ण और सहकारी
क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित करना।
3.
अपने क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्थाओं का समूह बनाने की
दिशा में काम करना।
4.
बाहरी हस्तक्षेप का डटकर मुकाबला करना।
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